पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१७१

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कलिकोष।

कचहरी-कच माने वाल और हरी मानी हरण करनेवाली, अर्थात् मुडन (उल्टे छूरे से मूडनेवाली) जहा गये मुडाये सिद्ध।

दार-दर्व द्रव्य का अपभ्रश और अरि अर्थात शन, जैसे सुरारि मुरारि इत्यादि । भाषा में अन्तवाली हवइ को माना यहुधा लोप हो जाती है।

अदालत-श्रदा अर्थात् छवि, उसकी लत । पोशाकें चमका २ के जा बैठनेवालों का स्थान । अथवा होगा तो वही जो भाग में है, पर अपनी दौडने चूपने को लत अदा कर लो। अथवा अदा घना के जायो, लातें खा के थानो इत्यादि । हाकिम-दुखी कहता है हा ! (हाय) तो हुजूर कहते है किम् अर्थात् क्या है वे ? अथवा क्यों यकता है।

वकील- कील, जो सदा कलेजे में खटके, अथवा वग भाषा में 'यो की प्या है, अर्थात् वह तुम्हारे पास क्या हैं, लायो।

मुखतार-जिसके मुख से तार निकले, थर्थात् मकडी (जाल फैलानेवाला) अथवा मुस्त्यारि (मुक्तिका अरि जो फदे में आ सो छूटने न पाये।)

मुमकिल-मुथा अर्थात् मरा फिल इति निश्चयेन (जसर -मरो)

मुद्दई-ग्राम्य भाषा में शत्रु को कहते हैं, (हमार मुद्दई आहिउ लरिका थोरे माहित।)

मुद्दालेह-मुद (प्रानन्द) मा !!श्रा !ले दोत । अर्थात् भाव प्राय मजा ले अपने कर्मों का।

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