जमी पर किसके हो हिन्दू रहें अय ।
'खयर लादे कोई तहतुस्सरा की ।।९
कोई पूछे तो हिन्दुस्तानियों से।
-"कि तुमने किस तवका पर वफा की' ।
उसे मोमिन न समझो ऐ बरहमन ।
'सताये जो कोई पिलकन खुदा की' ॥ ११
यह १५ दिसम्बर १८८३ के "ब्राह्मण" में प्रकाशित हुई थी। उस समय गोरक्षा विषयक राय चर्चा चल रही थी। आगरे में हिन्दू मुसलमानों के बीच झगडा भी, उसी दरमि यान में हुआ था । वेगारी पकडने के विषय में भी "ब्राह्मण" में कई लेख निकले थे। इन्हीं बातों को लक्ष्य करके "घरह- मन" साहय ने यह गजल गाई थी । उर्दू में आप अपना तख ल्लुस “वरहमन" लिखते थे। इसी तरह की एक और कविता सुन लीजिए-
विवादो पढ़े हैं यहां कैसे कैसे।
'कलाम आते हैं दरमिया कैसे कैसे॥१
जहा देखिए म्लेच्छ सेना के हाथों ।
'मिटे नामियों के निशा कैसे कैसे ॥२
बने पद के गौरड भाषा द्विजाती।
'मुरीदाने पीरे मुगां कैसे केसे ॥३
। यसो मूर्सते देघि'आर्यों के जी में।
'तुम्हारे लिए हैं मका कैसे केसे ॥४
अनुद्योग आलस्य सन्तोप सेया।
'हमारे भी हैं मिहरवा कैसे कैसे ॥ ५
- तयतुस्सरा-पाताल।