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पृष्ठ:निर्मला.djvu/११५

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निर्मला
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सकता,उछलता है और गिर पड़ता है। पङ्ख फड़फड़ा कर रह जाता है। उसका हृदय अन्दर ही अन्दर तड़प रहा था;पर बाहर न जा सकती थी!

इतने में दोनों लड़के रोते हुए अन्दर आकर बोले-भैया जी चले गए! निर्मला मूर्तिवत् खड़ी रही,मानो संज्ञा-हीन हो गई हो। चले गए, घर में आए तक नहीं मुझसे मिले तक नहीं चले गए! मुझसे इतनी घृणा! मैं उनकी कोई न सही, उनकी बुआ तो थीं। उनसे मिलने तो आना चाहिए था! मैं यहाँ थी न! अन्दर कैसे कदम रखते? मैं देख लेती न! इसीलिए चले गए!