पृष्ठ:निर्मला.djvu/११६

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नवाँ परिच्छेद

मन्साराम के जाने से घर सूना हो गया। दोनों छोटे लड़के उसी स्कूल में पढ़ते थे। निर्मला रोज़ उनसे मन्साराम का हाल पूछती। आशा थी कि छुट्टी के दिन वह आएगा; लेकिन जब छुट्टी के दिन गुज़र गए; और वह न आया, तो निर्मला की तबीयत घबराने लगी। उसने उसके लिए मूँग के लड्‌डू बना रक्खे थे। सोमवार को प्रातः भुङ्गी को लड्‌डू देकर मदरसे भेजा। नौ बजे भुङ्गी लौट आई। मन्साराम ने लड्‌डू ज्यों के त्यों लौटा दिए थे।

निर्मला ने पूछा—पहले से कुछ हरे हुए हैं रे?

भुङ्गी—हरे-वरे तो नहीं हुए, और सूख गए हैं!

निर्मला—क्या जी अच्छा नहीं है क्या?

भुङ्गी—यह तो मैंने नहीं पूछा बहू जी, झूठ क्यों बोलूँ। हाँ, वहाँ का कहार मेरा देवर लगता है। वह कहता था कि तुम्हारे बाबू जी की ख़ुराक कुछ नहीं है। दो फुलकियाँ खाकर उठ जाते हैं। फिर दिन भर कुछ नहीं खाते। हर दम पढ़ते रहते हैं।