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पृष्ठ:निर्मला.djvu/१२०

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नवां परिच्छेद
 

केवल इतना मुँह से निकला-कोई खास बात नहीं थी। आप तो उधर जा ही रहे हैं।

मुन्शी जी-मैंने लड़कों से पूछा था तो वे कहते थे,कल वैठे पढ़ रहे थे। आज न जाने क्या हो गया!

निर्मला ने आवेश से कॉपते हुए कहा-यह सव आप कर रहे हैं।

मुन्शी जी ने स्रियोयाँ वदल कर कहा-मैं कर रहा हूँ! मैं क्या कर रहा हूँ?

निर्मला-अपने दिल से पूछिए।

मुन्शी जी-मैंने तो यही सोचा था कि यहाँ उसका पढ़ने में जी नहीं लगता,वहाँ और लड़कों के साथ खामख्वाह ही पढ़ेगा। यह तो कोई बुरी बात न थी, और मैंने क्या किया?

निर्मला-खूब सोचिए,इसीलिए आपने उन्हें वहाँ भेजा था? आप के मन में कोई और बात न थी?

मुन्शी जी जरा हिचकिचाए और अपनी दुर्बलता को छिपाने के लिए मुस्कराने की चेष्टा करके वोले-और क्या बात हो सकती थी? भला तुम्हीं सोचो!

निर्मला-खैर, यही सही। अब आप कृपा करके उन्हें आज ही लेते आइएगा, वहाँ रहने से उनकी बीमारी बढ़ जाने का भय है। यहाँ दीदी जी जितनी बीमारदारी कर सकती हैं,दूसरा नहीं कर सकता।

एक क्षण के बाद उसने सिर नीचा करके फिर कहा-मेरे