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दसवां परिच्छेद
 

जियाराम-नहीं, यह कुछ नहीं हुआ। बेचारी जमीन पर वैठ कर रोने लगी, मुझे भी करुणा आ गई। मैं भी रो पड़ा,तब उन्होंने आँचल से मेरे आँसू पोंछे और बोलीं-जिया! मैं ईश्वर को साक्षी देकर कहती हूँ कि मैंने तुम्हारे भैया के विषय में तुम्हारे वाबू जी से एक शब्द भी नहीं कहा। मेरे भाग्य में कलङ्क लिखा हुआ है, वही भोग रही हूँ। फिर और न जाने क्या-क्या कहा, जो मेरी समझ में नहीं आया। कुछ बाबू जी की बात थी।

मन्साराम ने उद्विग्नता से पूछा-बाबू जी के विषय में क्या कहा, कुछ याद है?

जियाराम-बातें तो भई मुझे याद नहीं आती। मेरी मैमोरी(Memory) कौन बड़ी तेज़ है;लेकिन उनकी बातों का मतलब कुछ ऐसा मालूम होता था कि उन्हें बाबू जी को प्रसन्न रखने के लिए यह स्वॉग भरना पड़ रहा है। न जाने धर्म-अधर्म की कैसी बातें करती थीं,जो मैं बिलकुल न समझ सका। मुझे तो अब इसका विश्वास आ गया है कि उनकी इच्छा तुम्हें यहाँ भेजने की न थी।

मन्साराम-तुम इन चालों का मतलब नहीं समझ सकते। ये बड़ी गहरी चालें हैं।

जियाराम-तुम्हारी समझ में होंगी, मेरी समझ में तो नहीं हैं। मन्साराम-जब तुम ज्योमेटरी (Geometry) नहीं समझ सकते, तो इन बातों को क्या समझ सकोगे! उस रात को जब मुझे