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दसवां परिच्छेद
 

मन्सा-सच! नहीं,ऐसा क्यों करेंगी। यहाँ आई,तो बड़ी परेशानी होगी। तुम कह देना,वह कहीं मैच देखने गए हैं।

जिया-मैं झूठ क्यो बोलने लगा। मैं कह दूँगा वह मुंह फुलाए बैठे थे। देख लेना उन्हें साथ लाता हूँ कि नहीं!

सिया०-हम कह देंगे कि आज पढ़ने नहीं गए। पड़े-पड़े सोते रहे। मन्साराम ने इन दूतों से कल आने का वादा करके गला छुड़ाया। जब दोनों चले गए,तो फिर चिन्ता में डूबा। रात भर उसे करवट बदलते गुजरी। छट्टी का दिन भी बैठे ही बैठे कट गया,उसे दिन भर शङ्का होती रही कि कहीं अम्माँ जी सचमुच न चली आवें। किसी गाड़ी की खड़खड़ाहट सुनता,तो उसका कलेजा धकधक करने लगता। कहीं आ तो नहीं गई!

छात्रालय में एक छोटा-सा औषधालय था। एक डॉक्टर साहव सन्ध्या समय एक घण्टे के लिए आ जाया करते थे। अगर कोई लड़का बीमार होता,तो उसे दवा देते। आज वह आए तो मन्साराम कुछ सोचता हुआ उनके पास जाकर खड़ा हो गया। वह मन्साराम को अच्छी तरह जानते थे। उसे देख कर आश्चर्य से वोले-यह तुम्हारी क्या हालत है जो? तुम तो मानो गले जा रहे हो। कहीं वाज़ार का चस्का तो नहीं पड़ गया? आखिर तुम्हें हुआ क्या? जरा यहाँ तो आओ!

मन्साराम ने मुस्करा कर कहा-मुझे जिन्दगी का रोग है। आपके पास इसकी भी कोई दवा है?