पृष्ठ:निर्मला.djvu/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६३
तेरहवाँ परिच्छेद
 

प्रार्थना नहीं की थी! यह बला मेरे सिर न जाने क्यों मढ़ दी? मैं बड़ी अभागिनी हूँ बहिन! विवाह के एक महीने पहले पिता जी का देहान्त हो गया। उनके मरते ही मेरे सिर सनीचर सवार हुए! जहाँ पहले विवाह की बातचीत पकी हुई थी,उन लोगों ने आँखें फेर ली। वेचारी अम्माँ जी को हार कर मेरा विवाह यहाँ करना पड़ा। अव छोटी बहिन का विवाह होने वाला है। देखें, उसकी नाव किस घाट जाती है?

सुधा-जहाँ पहले विवाह की बातचीत हुई थी,उन लोगों ने इन्कार क्यों कर दिया?

निर्मला-यह तो वे ही जान;पिता जी ही न रहे,तो सोने की गठरी कौन देता?

सुधा-यह तो नीचता है! कहाँ के रहने वाले थे? निर्मला-लखनऊ के। नाम तो याद नहीं,आवकारी के कोई बड़े अफसर थे।

सुधा ने गम्भीर भाव से पूछा-और उनका लड़का क्या करता था?

निर्मला कुछ नहीं,कहीं पढ़ता था;पर बड़ा होनहार था।

सुघा ने सिर नीचा करके कहा-उसने अपने पिता से कुछ न कहा? वह तो जवान था,क्या अपने बाप को दवा न सकता था?

निर्मला-अब यह मैं क्या जाने बहिन। सोने की गठरी किसे प्यारी नहीं होती? जो पण्डित मेरे यहाँ से सन्देशा लेकर