पृष्ठ:निर्मला.djvu/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
निर्मला
१६८
 

यह बड़ा भारी अन्याय किया है;और तुम्हें इसका प्रायश्चित्त करना पड़ेगा! ईश्वर उसका सुहाग अमर करे;लेकिन वकील साहब को कहीं कुछ हो गया,तो बेचारी का जीवन ही नष्ट हो जायगा। आज तो वह बहुत रोती थी। तुम लोग सचमुच बड़े निर्दयी हो! मैं तो अपने सोहन का विवाह किसी गरीब लड़की से करूँगी।

डॉक्टर साहब ने यह पिछला वाक्य नहीं सुना! वह घोर चिन्ता में पड़ गए। उनके मन में यह प्रश्न उठ-उठ कर उन्हें विकल करने लगा-कहीं वकील साहब को कुछ हो गया तो? आज उन्हें अपने स्वार्थ का भयङ्कर स्वरूप दिखाई दिया! वास्तव में यह उन्हीं का अपराध था। अगर उन्होंने पिता से जोर देकर कहा होता कि मैं और कहीं विवाह न करूँगा,तो क्या वह उनकी' इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह कर देते?

सहसा सुधा ने कहा-कहो तो कल निर्मला से तुम्हारी मुलाकात करा दूं। वह भी जरा तुम्हारी सूरत देख ले। वह कुछ बोलेगी तो न;पर कदाचित् एक दृष्टिं में वह तुम्हारा इतना तिरस्कार कर देगी,जिसे तुम कभी न भूल सकोगे! बोलो, कल मिला दूँ? तुम्हारा बहुत संक्षिप्त परिचय भी करा दूंगी।

सिन्हा ने कहा-नहीं सुधा,तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ,कहीं ऐसा गजब न करना! नहीं तो मैं सच कहता हूँ,घर छोड़ कर भाग जाऊँगा!

सुधा-जो काँटा बोया है,उसका फल खाते क्यों इतना डरते