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निर्मला
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निर्मला-हाँ बहिन, डर तो लगता है। ब्याह की गई तीन साल में आई; अब की तो वहाँ उम्र ही खतम हो जायगी; फिर कौन बुलाता है;और कौन आता है?

सुधा-आने को क्या हुआ; जब जी चाहे चली आना। वहाँ वकील साहब बेचैन हो रहे हैं।

निर्मला-बहुत बेचैन, रात को शायद नींद न आती हो?

सुधा-बहिन, तुम्हारा कलेजा पत्थर का है। उनकी दशा देख कर तरस आता है। कहते थे, घर में कोई पूछने वाला नहीं, न कोई लड़का न बाला, किससे जी बहलावें? जब से दूसरे मकान में उठ आए हैं, बहुत दुखी रहते हैं।

निर्मला-लड़के तो ईश्वर के दिए दो-दो हैं।

सुधा-उन दोनों की तो बड़ी शिकायत करते थे। जियाराम तो अब बात ही नहीं सुनता-तुरकी बतुरकी जवाब देता है। रहा छोटा, वह भी उसी के कहने में है। वेचारे बड़े लड़के को याद करके रोया करते हैं!

निर्मला-जियाराम तो शरीर न था, वह बदमाशी कब से सीख गया? मेरी तो कोई बात न टालता था-इशारे पर काम करता था।

सुधा-क्या जाने बहिन! सुना, कहता है आप ही ने भैया को जहर देकर मार डाला-आप हत्यारे हैं। कई बार तुमसे विवाह करने के लिए ताने दे चुका है। ऐसी-ऐसी बातें कहता है कि