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सत्रहवाँ परिच्छेद
 

हाथों से पाँच बार सोहन का सिर सुहलाया। अब जो देखा,तो पाँचों तीलियाँ छोटी-बड़ी हो गई थी। सव स्त्रियाँ यह कौतुक देख कर दङ्ग रह गई। अब नजर में किसे सन्देह हो सकता था? मँहगू ने फिर बच्चे को तीलियों से सुहलाना शुरू किया। अब की तीलियाँ बराबर हो गई। केवल थोड़ा सा अन्तर रह गया। यह इस बात का प्रमाण था कि नज़र का असर अब थोड़ा सा और रह गया है। मॅहगू सबको दिलासा देकर शाम को फिर आने का वायदा करके चला गया। बालक की दशा दिन को और भी खराब हो गई। खाँसी का जोर हो गया। शाम के समय मँहगू ने आकर फिर तीलियों का तमाशा किया। इस वक्त पाँचों तीलियाँ वरावर निकलीं। स्त्रियाँ निश्चिन्त हो गई लेकिन सोहन को सारी रात खाँसते गुजरी। यहाँ तक कि कई वार उसकी आँखें उलट गई। सुधा और निर्मला दोनों ने बैठ कर सवेरा किया। खैर,रात कुशल से कट गई। अब वृद्धा माता जी नया रङ्ग लाई। मॅहगू नज़र न उतार सका,इसलिए अब किसी मौलवी से फूंक डलवाना जरूरी हो गया। सुधा फिर भी अपने पति को सूचना न दे सकी। महरी सोहन को एक चादर से लपेट कर एक मस्जिद में ले गई; और फूंक डलवा लाई। शाम को भी फूंक छोड़ी गई,पर सोहन ने सिर न उठाया। रात आ गई, सुधा ने आज मन में निश्चय किया कि रात कुशल से बीतेगी,तो प्रातःकाल पति को तार दूंगी।

लेकिन रात कुशल से न बीतने पाई! आधी रात जाते-जाते