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दूसरा परिच्छेद
 


निशा ने इन्दु को परास्त करके अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। उसकी पैशाचिक सेना ने प्रकृति पर आतङ्क जमा रक्खा था !सद्ववृत्तियाँ मुँह छिपाए पड़ी थीं; और कुवृत्तियाँ विजय-गर्व से इठलाती फिरती थीं। वन में वन्य-जन्तु शिकार की खोज में विचर रहे थे; और नगरों में नर-पिशाच गलियों में मँडलाते फिरते थे।

वाबू उदयभानुलाल लपके हुए गङ्गा की ओर चले जा रहे थे। उन्होंने अपना कुर्ता घाट के किनारे रख कर पाँच दिन के लिए मिर्जापूर चले जाने का निश्चय किया था। उनके कपड़े देख कर लोगों को उनके डूब जाने का विश्वास हो जायगा। कार्ड कुर्ते की जेब में था। पता लगने में कोई दिक्कत न हो सकती थी। दम के दम में सारे शहर में खवर मशहूर हो जायगी। आठ बजते-बजते तो मेरे द्वार पर सारा शहर जमा हो जायगा, तब देखूँ देवी जी क्या करती हैं?

यही सोचते हुए बाबू साहब गलियों में चले जा रहे थे, सहसा उन्हें अपने पीछे किसी दूसरे आदमी के आने की आहट मिली; समझे कोई होगा। आगे बढ़े; लेकिन जिस गली में वह मुड़ते, उसी तरफ वह आदमी भी मुड़ता था। तब तो बाबू साहब को आशङ्का हुई कि यह आदमी मेरा पीछा कर रहा है। ऐसा आभास हुआ कि इसकी नीयत साफ नहीं है। उन्होंने तुरन्त जेबी लालटेन निकाली; और उसके प्रकाश में उस आदमी को देखा। एक बलिष्ट मनुष्य कन्धे पर लाठी रक्खे चला आता था। बाबू साहब उसे देखते ही चौंक पड़े। यह शहर का छटा हुआ बदमाश था। तीन साल पहले उस पर डाके का अभियोग चला