पृष्ठ:निर्मला.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
 

उन्नीसवाँ परिच्छेद

अब की सुधा के साथ निर्मला को भी आना पड़ा। वह तो मैके में कुछ दिन और रहना चाहती थी, लेकिन शोकातुरा सुधा अकेले कैसे रहती। उसकी खातिर आना ही पड़ा।

रुक्मिणी ने भुङ्गी से कहा-देखती है, बहू मैके से कैसी निखर कर आई है।

भुङ्गी ने कहा-दीदी, माँ के हाथ की रोटियाँ लड़कियों को बहुत अच्छी लगती हैं।

रुक्मिणी-ठीक कहती है भुङ्गी, खिलाना तो कुछ माँ ही जानती है।

निर्मला को ऐसा मालूम हुआ कि घर का कोई आदमी उसके आने से खुश नहीं। मुन्शी जी ने खुशी तो बहुत दिखाई; पर हृदयगत चिन्ता को न छिपा सके। बच्ची का नाम सुधा ने आशा रख दिया था। वह आशा की मूर्ति सी थी भी। देख कर सारी