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वीसवॉ परिच्छेद
 

निर्मला ने इस भाव से कहा, मानो उसे उसकी बात का पूरा विश्वास हो गया-हाँ, मुझे ऐसा मालूम हुआ कि कोई मेरे कमरे से निकला। मैं ने उसका मुँह तो न देखा; पर उसकी पीठ देख कर अनुमान किया कि शायद तुम किसी काम से आए हो। इसका पता कैसे चले कौन था? कोई था ज़रूर,इसमें कोई सन्देह नहीं।

जियाराम अपने को निरपराध सिद्ध करने की चेष्टा कर कहने लगा-मैं तो रात को थियेटर देखने चला गया था। वहाँ से लौटा तो एक मित्र के घर लेट रहा। थोड़ी देर हुई लौटा हूँ। मेरे साथ और भी कई मित्र थे। जिससे जी चाहे पूछ लें। हॉ भाई, मै बहुत डरता हूँ। ऐसा न हो कोई चीज़ ग़ायब हो गई हो,तो मेरा नाम लगे। चोर को तो कोई पकड़ नहीं सकता। मेरे मत्थे जायगी। बाबू जी को आप जानती हैं,मुझे मारने दौड़ेंगे।

निर्मला-तुम्हारा नाम क्यों लगेगा? अगर तुम्हीं होते तो भी तुम्हें कोई चोरी नहीं लगा सकता। चोरी दूसरे की चीज़ की जाती है,अपनी चीज़ की चोरी कोई नहीं करता।

अभी तक निर्मला की निगाह अपने सन्दूकचे पर न पड़ी थी। भोजन बनाने लगी। जब वकील साहब कचहरी चले गए,तो वह सुधा से मिलने चली। इधर कई दिनों से मुलाक़ात न हुई थी। फिर रात वाली घटना पर विचार-परिवर्तन भी करना था। भुङ्गी से कहा-कमरे में से गहनों का बक्स उठा ला।

भुङ्गी ने लौट कर कहा-वहाँ तो कहीं सन्दूक्त नहीं है। कहाँ रक्खा था?