पृष्ठ:निर्मला.djvu/२४७

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इक्कीसवाँ परिच्छेद

रूक्मिणी ने निर्मला से त्योरियाँ बदल कर कहा-क्या नङ्गे पाँव ही मदरसे जायगा?

निर्मला ने बच्ची के बाल गूँथते हुए कहा-मैं क्या करूँ,मेरे पास रुपए नहीं हैं।

रुक्मिणी-गहने बनवाने को रुपए जुड़ते हैं,लड़के के जूतों के लिए रुपयों में आग लग जाती है। दो तो चले ही गए,क्या तीसरे को भी रुला-रुला कर मार डालने का इरादा है?

निर्मला ने एक साँस खींच कर कहा-जिसको जीना है जिएगा, जिसको मरना है मरेगा; मैं किसी को मारने-जिलाने नहीं जाती?

आजकल एक न एक बात पर निर्मला और रुक्मिणी में रोज़ ही एक झपट हो जाती थी। जब से गहने चोरी गए हैं, निर्मला का स्वभाव बिलकुल बदल गया है! वह एक-एक कौड़ी को दाँत से पकड़ने लगी है। सियाराम रोते-रोते चाहे जान दे दे,