पृष्ठ:निर्मला.djvu/२५

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तीसरा परिच्छेद

विधवा का विलाप और अनाथों का रोना सुना कर हम पाठकों का दिल न दुखाएँगे। जिसके ऊपर पड़ती है, वह रोता है, विलाप करता है, पछाड़ें खाता है। यह कोई नई बात नहीं। हाँ, अगर आप चाहें तो कल्याणी के उस घोर मानसिक यातना का अनुमान कर सकते हैं, जो उसे इस विचार से हो रहा था कि मैं ही अपने प्राणधार की घातिका हूँ। वे वाक्य, जो क्रोध के आवेश में उसके असंयत मुख से निकले थे, अब उसके हृदय को बाणों की भाँति छेद रहे थे। अगर पति ने उसकी गोद में कराह-कराह कर प्राणत्याग किए होते, तो उसे सन्तोष होता कि मैंने उनके प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन किया। शोकाकुल हृदयों के लिए इससे ज़्यादा सान्त्वना और किसी बात से नहीं होती। उसे इस विचार से कितना सन्तोष होता कि मेरे स्वामी मुझ से प्रसन्न गए, अन्तिम समय तक उनके हृदय में मेरा प्रेम बना रहा। कल्याणी को यह सन्तोष न था। वह सोचती—हा! मेरी पचीस बरस की तपस्या