साधु-अवश्य! अभ्यास से सब कुछ हो सकता है। हॉ, योग्य गुरु चाहिए। योग से बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। जितना धन चाहो,पलमात्र में मॅगा सकते हो। कैसी ही बीमारी हो,उसकी औषधि बता सकते हो।
सिया०-आपका स्थान कहाँ है?
साधु-बच्चा,मेरे को स्थान कहीं नहीं है। देश-देशान्तरों में रमता फिरता हूँ। अच्छा बच्चा,अव तुम जाव,मैं जरा स्नान-ध्यान करने जाऊँगा।
सिया-चलिए मैं भी उसी तरफ चलता हूँ। आपके दर्शनों से जी नहीं भरा।
साधु-नहीं बच्चा,तुम्हें पाठशाले जाने को देर हो रही है।
सिया-फिर आपके दर्शन कब होंगे?
साधु-कभी आ जाऊँगा बच्चा,तुम्हारा घर कहाँ है?
सियाराम प्रसन्न होकर बोला-चलिएगा मेरे घर;बहुत नज़दीक है। आपकी बड़ी कृपा होगी।
सियाराम कदम बढ़ा कर आगे-आगे चलने लगा। इतना प्रसन्न था, मानो सोने की गठरी लिए जाता हो। घर के सामने पहुँच कर बोला-आइए,बैठिए कुछ देर ।
साधु-नहीं बच्चा,बैठूंगा नहीं।फिर कल-परसों किसी समय आ जाऊँगा,यही तुम्हारा घर है?
सिया०-कले किस वक्त.आइएगा।
साधु-निश्चय नहीं कह सकता। किसी समय आ जाऊँगा।