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निर्मला
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करनी है। तुम्हारे ही कारण आज मेरी यह दशा हो रही है। आज से छः साल पहले क्या इस घर की यही दशा थी? तुमने मेरा बना-बनाया घर बिगाड़ दिया,तुमने मेरे लहलहाते हुए बारा को उजाड़ डाला। केवल एक ढूँठ रह गया है। उसका निशान मिटा कर तभी तुम्हें सन्तोष होगा। मैं अपना सर्वनाश करने के लिए तुम्हें अपने घर नहीं लाया था। सुखी जीवन को और भी सुखमय बनाना चाहता था। यह उसी का प्रायश्चित्त है। जो लड़के पान की तरह फेरे जाते थे,उन्हें मेरे जीते जी तुमने चाकर समझ लिया;और मैं आँखों से सब कुछ देखते हुए भी अन्धा बना बैठा रहा। जाओ,मेरे लिए थोड़ा सा सहिया भेज दो। बस,यही कसर गई है; वह भी पूरी हो जाय।

निर्मला ने रोते हुए कहा-मैं तो अभागिन हूँ ही,आप कहेंगे तब जानूँगी? न जाने ईश्वर ने मेरा जन्म क्यों दिया था। मगर यह आपने कैसे समझ लिया कि सियाराम अब आगे ही नहीं?

मुन्शी जी ने अपने कमरे की ओर जाते हुए कहा-जलाओ मत, जाकर खुशियाँ मनाओ। तुम्हारी मनोकामना पूरी होगई!