पृष्ठ:निर्मला.djvu/२७४

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चौबीसवाँ परिच्छेद

निर्मला सारी रात रोती रही। इतना बड़ा कलङ्क! उसने जियाराम को गहने ले जाते देखने पर भी मुँह खोलने का साहस नही किया। क्यों? इसीलिए तो कि लोग समझेंगे कि वह मिथ्या दोषारोपण करके लड़के से बैर साध रही है। आज उसके मौन रहने पर उसे अपराधिनी ठहराया जा रहा है। यदि वह जियाराम को उसी क्षण रोक देती; और जियाराम लज्जावश कहीं भाग जाता, तो क्या उसके सिर अपराध न मढ़ा जाता?

सियाराम ही के साथ उसने कौन सा दुर्व्यवहार किया था। वह कुछ बचत करने ही के विचार से तो सियाराम से सौदा मँगवाया करती थी। क्या वह बचत करके अपने लिए गहने गढ़वाना चाहती थी? जब आमदनी का यह हाल हो रहा था, तो पैसे-पैसे पर निगाह रखने के सिवाय कुछ जमा करने का