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निर्मला
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डॉक्टर साहब के प्राण सूखे जा रहे थे। हिचकिचाते हुए बोले- आई क्यों नहीं थीं।

सुधा-तुम्हें यहाँ बैठे देख कर चली गई होंगी। बस,किसी महरी ने कुछ कह दिया होगा। नीच जात हैं न,किसी को बात करने की तमीज़ तो है नहीं। अरी ओ सुन्दरिया,जरा यहाँ तो आ!

डॉक्टर-उसे क्यों बुलाती हो,वह यहाँ से सीधे दरवाजे की तरफ़ गई,महरियों से तो बात तक नहीं हुई।

सुधा-तो फिर तुम्हीं ने कुछ कह दिया होगा।

डॉक्टर साहब का कलेजा धक-धक करने लगा। बोले-मैं भला क्या कह देता,क्या ऐसा गँवार हूँ?

सुधा-तुमने उन्हें आते देखा तब भी बैठे रह गए?

डॉक्टर-मैं यहाँ था ही नहीं। बाहर बैठक में अपनी ऐनक ढूँढ़ता रहा। जब वहाँ न मिली,तो मैं ने सोचा शायद अन्दर हो।'यहाँ आया सो उन्हें बैठे देखा। मैं बाहर जाना चाहता था कि उन्होंने खुद पूछा-किसी चीज़ की ज़रूरत है? मैं ने कहा-जरा देखना यहाँ मेरी ऐनक तो नहीं है। ऐनक इसी सिरहाने वाले ताक पर थी। उन्होंने उठा कर दे दी। बस,इतनी ही तो बात हुई।

सुधा-बस,तुम्हें ऐनक देते ही वह झलाई हुई बाहर चली गई! क्यों?