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निर्मला
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है। वकील साहब रहे ही नहीं, बुढ़िया के पास अब क्या होगा!!

रँगीली--तुम्हें ऐसी बातें मुँह से निकालते शर्म नहीं आती?

भुवन-'इसमें शर्म की कौन सी बात है। रुपये किसे काटते हैं। लाख रुपये तो लाख जन्म में भीन जमा कर पाऊँगा। इस साल पास भी हो गया, तो कम से कम पाँच साल तक रुपये की सूरत नज़र न आएगी। फिर सौ दो सौ रुपये महीने कमाने लगूँगा। पाँच-छः तक पहुँचते-पहुँचते उन के तीन भाग बीत जाँएगे। रुपये जमा करने की नौबत ही न आएगी। दुनिया का कुछ मजा न उठा सकूँगा। किसी धनी की लड़की से शादी हो जाती, तो चैन से कटती। मैं ज्यादा नहीं चाहता, बस एक लाख नकद हो। या फिर कोई ऐसी जायदाद वाली बेवा मिले, जिसकी एक ही लड़की हो।

रँगीली--चाहे औरत कैसी ही मिले?

भुवन--धन सारे ऐबों को छिपा देगा। मुझे तो वह गालियाँ भी, सुनाए तो चूँ न करूँ। दुधारू गाय की लात किसे बुरी मालूम होती है?

बाबू साहब ने प्रशंसा-सूचक भाव से कहा--हमें उन लोगों के साथ सहानुभूति है; और दुख है कि ईश्वर ने उन्हें विपत्ति में डाला, लेकिन बुद्धि से काम लेकर ही कोई निश्चय करना चाहिए। हम कितने ही फटे हालों जायँ, फिर भी अच्छी खासी बारात हो जायगी। वहाँ भोजन का ठिकाना भी नहीं। सिवा इसके कि लोग हँसें; और कोई नतीजा न निकलेगा।