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चौथा परिच्छेद
 

कल्याणी--कुछ कार्य भी सिद्ध हुआ, या रास्ता ही नापना पड़ा?

मोटे०--कार्य क्यों न सिद्ध होता, भला यह भी कोई बात है? पाँच जगह बातचीत कर आया हूँ। पाँचों की नक़ल लाया हूँ। उसमें से आप जिसे चाहें पसन्द करें। यह देखिए, इस लड़के का बाप डाक के सेगे में १०० महीने का नौकर है। लड़का अभी कॉलेज में पढ़ रहा है। मगर नौकरी ही का भरोसा है, घर में कोई जायदाद नहीं। लड़का होनहार मालूम होता है। खानदान भी अच्छा है। २००० में बात तय हो जायगी। माँगते तो वह तीन हज़ार हैं।

कल्याणी--लड़के के और भी भाई हैं?

मोटे०--नहीं, मगर तीन बहिनें हैं; और तीनों कारी! माता जीवित है। अच्छा, अब दूसरी नकल देखिए। यह लड़का रेल के सेगे में ५० महीना पाता है। माँ-बाप नहीं हैं। बहुत ही रूपवान्, सुशील और शरीर से खूव हृष्ट-पुष्ट, कसरती जवान है। मगर खानदान अच्छा नहीं कोई कहता है, माँ नाइन थी, कोई कहता है ठकुराइन थी। बाप किसी रियासत में मुख्तार थे। घर पर थोड़ी सी ज़मींदारी है। मगर उस पर कई हजार का कर्जा है। यहाँ कुछ लेना-देना न पड़ेगा। उम्र कोई वीस साल होगी।

कल्याणी--खानदान में दारा न होता, तो मञ्जूर कर लेती। देख कर तो मक्खी नहीं निगली जाती।