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निर्मला
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कोट फेंको। तन्ज़ेब की चुस्त अचकन हो,चुन्नटदार पाजामा,गले में सोने की ज़ञ्जीर पड़ी हुई,सिर पर जयपुरी साफ़ा बँधा हुआ आँखों में सुर्मा और बालों में हिना का तेल पड़ा हुआ। तोंद का पचकना भी जरूरी है। दोहरा कमरबन्द बाँधो। जरा तकलीफ तो होगी; पर अचकन सज उठेगी। खिज़ाब मैं ला दूँगा। सौ-पचास ग़ज़लें याद कर लो; और मौक़े-मौक़े से शैर पढ़ो। बातों में रस भरा हो। ऐसा मालूम हो कि तुम्हें दीन और दुनिया की कोई फिक्र नहीं है, बस जो कुछ है प्रियतमा ही है। जवाँमर्दी और साहस के काम करने का मौका ढूँढ़ते रहो। रात को झूठ-मूठ शोर करो--चोर-चोर, और तलवार लेकर अकेले पिल पड़ो। हाँ, ज़रा मौका देख लेना, ऐसा न हो कि सचमुच कोई चोर आजाय; और तुम उसके पीछे दौड़ो, नहीं तो सारी क़लई खुल जायगी और मुफ़्त में उल्लू बनोगे। उस वक्त तो जवाँमर्दी इसी में है कि दम साधे पड़े रहो, जिसमें वह समझे कि तुम्हें खबर ही नहीं हुई; लेकिन ज्योंही चोर भाग खड़ा हो, तुम भी उछल कर बाहर निकलो और तलवार लेकर कहाँ-कहाँ कहते दौड़ो। ज्यादा नहीं, एक ही महीने मेरी बातों का इम्तहान करके देखो। अगर वह तुम्हारा दम न भरने लगे, तो जो जुर्माना कहो वह दूँ।

तोताराम ने उस वक्त तो यह बातें हँसी में उड़ा दीं, जैसा कि एक व्यवहार-कुशल मनुष्य को करना चाहिए था, लेकिन इनमें की कुछ बातें उनके मन में बैठ गई। उनका असर पड़ने में कोई सन्देह न था। धीरे-धीरे रङ्ग बदलने लगे, जिसमें लोग खटक न