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यहाँ माता की सेवा और छोटे भाइयों की देखभाल में उसका समय बड़े आनंद से कट जाता था। वकील साहब खुद आते तो शायद वह जाने पर राजी हो जाती, लेकिन इस विवाह में, मुहल्ले की लड़कियों ने उनकी वह दुर्गत की थी कि बेचारे आने का नाम ही न लेते थे। सुधा ने भी कई बार पत्र लिखा, पर निर्मला ने उससे भी हीले-हवाले किए। आखिर एक दिन सुधा ने नौकर को साथ लिया और स्वयं आ धमकी।

जब दोनों गले मिल चुकीं तो सुधा ने कहा-तुम्हें तो वहाँ जाते मानो डर लगता है।

निर्मला–हाँ बहन, डर तो लगता है। ब्याह की गई तीन साल में आई, अब की तो वहाँ उम्र ही खतम हो जाएगी, फिर कौन बुलाता है और कौन आता है?

सुधा—आने को क्या हुआ, जब जी चाहे, चली आना। वहाँ वकील साहब बहुत बेचैन हो रहे हैं।

निर्मला-बहुत बेचैन, रात को शायद नींद न आती हो।

सुधा-बहन, तुम्हारा कलेजा पत्थर का है। उनकी दशा देखकर तरस आता है। कहते थे, घर में कोई पूछने वाला नहीं, न कोई लड़का, न बाला, किससे जी बहलाएँ? जब से दूसरे मकान में उठ आए हैं, बहुत दुःखी रहते हैं।

निर्मला-लड़के तो ईश्वर के दिए दो-दो हैं।

सुधा-उन दोनों की तो बड़ी शिकायत करते थे। जियाराम तो अब बात ही नहीं सुनता। तुर्की-बतुर्की जवाब देता है। रहा छोटा, वह भी उसी के कहने में है। बेचारे बड़े लड़के की याद करके रोया करते हैं।

निर्मला–जियाराम तो शरीर न था, वह बदमाशी कब से सीख गया? मेरी तो कोई बात न टालता था, इशारे पर काम करता था।

सुधा-क्या जाने बहन, सुना, कहता है, आप ही ने भैया को जहर देकर मार डाला, आप हत्यारे हैं। कई बार तुमसे विवाह करने के लिए ताने दे चुका है। ऐसी-ऐसी बातें कहता है कि वकील साहब रो पड़ते हैं। अरे और तो क्या कहूँ, एक दिन पत्थर उठाकर मारने दौड़ा था।

निर्मला ने गंभीर चिंता में पड़कर कहा-यह लड़का तो बड़ा शैतान निकला। उसे यह किसने कहा कि उसके भाई को उन्होंने जहर दे दिया है?

सुधा—वह तुम्हीं से ठीक होगा।

निर्मला को यह नई चिंता पैदा हुईं। अगर जिया का यही रंग है, अपने बाप से लड़ने पर तैयार रहता है तो मुझसे क्यों दबने लगा? वह रात को बड़ी देर तक इसी फिक्र में डूबी रही। मंसाराम की आज उसे बहुत याद आई। उसके साथ जिंदगी आराम से कट जाती। इस लड़के का जब अपने पिता के सामने ही यह हाल है तो उनके पीछे उसके साथ कैसे निर्वाह होगा! घर हाथ से निकल ही गया। कुछ-न-कुछ कर्ज अभी सिर पर होगा ही, आमदनी का यह हाल। ईश्वर ही बेड़ा पार लगाएँगे। आज पहली बार निर्मला को बच्चों की फिक्र पैदा हुई। इस बेचारी का न जाने क्या हाल होगा? ईश्वर ने यह विपत्ति सिर डाल दी। मुझे तो इसकी जरूरत न थी। जन्म ही लेना था तो किसी भाग्यवान के घर जन्म लेती। बच्ची उसकी छाती से लिपटी हुई सो रही थी। माता ने उसको और भी चिपटा लिया, मानो कोई उसके हाथ से उसे छीने लिए जाता है।

निर्मला के पास ही सुधा की चारपाई भी थी। निर्मला तो चिंता सागर में गोता लगा रही थी और सुधा मीठी नींद का आनंद उठा रही थी। क्या उसे अपने बालक की फिक्र सताती है? मृत्यु तो बूढ़े और जवान का भेद नहीं करती, फिर सुधा को कोई चिंता क्यों नहीं सताती? उसे तो कभी भविष्य की चिंता से उदास नहीं देखा। सहसा सुधा की नींद खुल गई। उसने निर्मला को अभी तक जागते देखा तो बोली-अरे अभी तुम सोई नहीं?

निर्मला-नींद ही नहीं आती।