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नैषध चरित-चर्चा

एतद्देशीय और विदेशीय विद्वानों ने जो कुछ आज-पर्यंत खोज करके पता लगाया है, उसकी पर्यालोचना करने से हर्ष नाम के तीन पुरुष पाए जाते हैं। एक श्रीहर्ष नाम का काश्मीर-नरेश, दूसरा हर्षदेव अथवा हर्षवर्द्धन नाम का कान्यकुब्जनृप (इसका दूसरा नाम शीलादित्य भी था), तीसरा श्रीहर्षनामक कवि। अब यह देखना है कि इन तीनो में से नैषध-चरित किसकी अपूर्व प्रतिभा का विजृंभण है।

प्रथम काश्मीराधिपति श्रीहर्ष के विषय में विचार कीजिए। कलहण-कृत राजतरंगिणी[१] के अनुसार इस श्रीहर्ष को सन् १०९१ और १०९७ ईसवी के बीच काश्मीर का सिंहासन प्राप्त हुआ था। इस काल-निर्णय से महामहोपाध्याय पंडित महेशचंद्र न्यायरत्न[२] तथा बाबू रमेशचंद्र दत्त[३] ये दोनो विद्वद्रत्न सहमत हैं। कुमारी मेबल डफ और मिस्टर


  1. राजतरंगिणी के ४ भाग हैं। प्रथम भाग में सन् १९४८ ईसवी तक का वृत्त वर्णित है। उसके कर्ता कल्हण पंडित हैं। दूसरे भाग की रचना जोनराज ने की है। उसमें सन् १४१२ ईसवी-पर्यंत काश्मीर का इतिहास है। तीसरा भाग श्रीवर पंडित के द्वारा लिखा गया है। उसमें सन् १४७७ ईसवी तक के इतिवृत्त का समावेश है। चतुर्थ भाग में प्रजय भट्ट ने अकबर द्वारा काश्मीर-विजय से लेकर शाहे-आलम बादशाह के समय तक का वर्णन किया है।
  2. काव्य-प्रकाश की भूमिका देखिए।
  3. See History of Civilization in Ancient India