का नाम चित्रभानु और माता का राज्यदेवी लिखा है। बाण की जन्मभूमि सोन-नदी के पश्चिम ओर प्रीतिकूट-नामक ग्राम था। माता-पिता का वियोग इसे बाल्यावस्था ही में सहन करना पड़ा था। १४ वर्ष की उम्र में भद्रनारायण, ईशान और मयूरक नामी अपने तीन मित्रों के साथ इसने विदेश यात्रा की, और कान्यकुब्ज-प्रदेश में पहुँचने पर वहाँ के राजा श्रीहर्ष के यहाँ आश्रय पाया। सुनते हैं, बाण भट्ट के मित्र मयूरक अथवा मयूर को कुष्ठ हो गया था। तन्निवारणार्थ मयूर ने सूर्यशतक-काव्य लिखकर सूर्य देवता को प्रसन्न किया। इसका यह फल हुआ कि मयूर का कुष्ठ जाता रहा। इस अलौकिक कवित्व-प्रभाव को देखकर बाण को यहाँ तक मत्सर उत्पन्न हुआ कि उसने अपने हाथ और पैर दोनो तोड़ लिए, और तोड़कर भगवती चंडिका के प्रीत्यर्थ चंडीशतक की रचना की। चंडी की दया से उसके हाथ-पैर पुनः पूर्ववत् हो गए। इस आख्यायिका की सत्यता अथवा असत्यता के विचार करने का यहाँ प्रयोजन नहीं; और यदि हो भी, तो तदर्थ कोई परिपुष्ट प्रमाण नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। तथापि यह निर्विवाद है कि ये दोनो शतक उत्तम कविता के नमूने हैं। ये प्रचलित भी हैं। प्रत्येक का आदिम श्लोक हम यहाँ पर उद्धृत करते हैं—
सूर्यशतक
जम्भारातीभकुम्भोद्भवमिव दधतः सान्द्रसिन्दूररेणुं
रक्ता:सिक्ता इवौधैरुदयगिरितटीधातुधाराद्रवस्थ।