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नैषध-चरित-चर्चा

प्रस्थान किया। मार्ग में इनकी परस्पर भेंट हुई । देवतों को यह विदित ही था कि दमयंतो नल को चाहती है । अतएव वे यह अच्छी तरह जानते थे कि नल के स्वयंवर में उपस्थित रहते दमयंती उन्हें कदापि नहीं मिल सकती। इसलिये इन देवतों ने चतुराई करके नल को अपना दूत बनाकर दमयंती के पास भेजना चाहा । नल यद्यपि दमयंती को स्वयं ही मनसा, वाचा, कर्मणा चाहते थे, तथापि देवतों की इच्छा के प्रति- कूल उन्होंने कोई बात करनी उचित न समझी। उनकी प्रार्थना को नल ने स्वीकार कर लिया । देवतों ने नल को अदृश्य होने को एक ऐसी विद्या पढ़ा दी, जिसके प्रभाव से वह दमयंती के अंतःपुर तक अदृष्ट प्रवेश कर गए। वहाँ इंद्र की भेजी हुई दूती के दूतत्व करके चले जाने पर नल ने बड़े चातुर्य से अनेक प्रकार से देवतों की प्रशंसा करके दमयंती का प्रलोभन किया। उन्होंने भय भी दिखाया । परंतु नल को छोड़कर अन्य के साथ विवाह करना दमयंती ने स्वीकार न किया । नल की प्राप्ति न होने से उलटा प्राण दे देने का प्रण उसने किया। तदनंतर नल ने अपने को प्रकट किए बिना ही दमयंती को समझाया कि देवतों की इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह नल से किसी तरह संभव नहीं । इसको दमयंती ने सत्य माना और नल की प्राप्ति से निराश होकर ऐसा हृदय- द्रावक विलाप करना आरंभ किया कि नल के होश उड़ गए । वह अपना दूतत्व भूल गए और प्रत्यक्ष नलभाव को प्रकाशित