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नैषध चरित का कथानक

न देख पड़ती थी, परंतु नल के शरीर की छाया देख पड़ती थी। इन चिह्नों से दमयंती ने नल को पहचानकर वरणमाल्य उसी के कंठ में डाल दिया। यह देखकर देवता लोग बहुत प्रसन्न हुए, और नल को प्रत्येक ने भिन्न-भिन्न वर-प्रदान किया।

पंद्रहवें सर्ग में दमयंती का श्रृंगारादि वर्णन है। सोलहवें में विवाह-विधि, भोजन तथा तत्कालोचित स्त्री-जनों की बातचीत है। सत्रहवें सर्ग में देवतों का प्रत्यागमन, मार्ग में कलि से थै सम्मिलन, परस्पर में कलह, दमयंती की प्राप्ति का हाल सुनकर नल से कलि का विद्वेष, देवतों का उसको समझाना इत्यादि है। अठारहवें सर्ग में नल और दमयंती का विहार-वर्णन है। उन्नीसवें में प्रभात-वर्णन, बोलवें में नल और दमयंती का हास्यविनोद, इक्कीसवें में नल-कृत ईश्वरार्चन और स्तवन इत्यादि, और अंतिम बाईसवें सर्ग में सायंकाल-वर्णन है ।



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