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अङ्क ३]
[दृश्य २
न्याय
ओक्लियरी
कभी कभी सनक सवार हो जाती है, हुज़ूर मैं क्या करूँ! हमेशा मन ठिकाने नहीं रहता।
दारोग़ा
काम तो पसन्द है न?
ओक्लियरी
[एक चटाई उठाकर जो वह बना रहा था।]
यह काम मुझे दिया गया है। मेरे चाहे कोई प्राण ही लेले। पर यह मुझसे न होगा। ऐसा सड़ियल काम! एक चूहा भी इसे बना सकता है।
[मुँह बनाकर]
बस, यही मुझसे नहीं सहा जाता। यही सन्नाटा! जरा सी कोई भनक कान में आए तो जी हलका हो जाता है।
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