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[पञ्चतन्त्र
 

उसने कहा—"पहले मेरे साथियों के बन्धन काट दो, बाद में मेरे काटना।"

हिरण्यक—"तुम सब के सरदार हो, पहले अपने बन्धन कटवा लो, साथियों के पीछे कटवाना।"

चित्रग्रीव—"वे मेरे आश्रित हैं, अपने घरबार को छोड़कर मेरे साथ आये हैं। मेरा धर्म है कि पहले इनकी सुखसुविधा को दृष्टि में रखूँ। अपने अनुचरों में किया हुआ विश्वास बड़े से बड़े संकट से रक्षा करता है।"

हिरण्यक चित्रग्रीव की यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सब के बन्धन काटकर चित्रग्रीव से कहा—"मित्र! अब अपने घर जाओ। विपत्ति के समय फिर मुझे याद करना।" उन्हें भेजकर हिरण्यक चूहा अपने बिल में घुस गया। चित्रग्रीव भी परिवारसहित अपने घर चला गया।

लघुपतनक कौवा यह सब दूर से देख रहा था। वह हिरण्यक के कौशल और उसकी सज्जनता पर मुग्ध हो गया। उसने मन ही मन सोचा—"यद्यपि मेरा स्वभाव है कि मैं किसी का विश्वास नहीं करता, किसी को अपना हितैषी नहीं मानता, तथापि इस चूहे के गुणों से प्रभावित होकर मैं इसे अपना मित्र बनाना चाहता हूँ।"

यह सोचकर वह हिरण्यक के बिल के दरवाज़े पर जाकर चित्रग्रीव के समान ही आवाज़ बनाकर हिरण्यक को पुकारने