पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१०६]
[पञ्चतन्त्र
 

वह उसे सुरक्षित निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा देगा। यह सुनकर हिरण्यक चूहा लघुपतनक कौवे की पीठ पर बैठ गया। दोनों आकाश में उड़ते हुए तालाब के किनारे पहुँचे।

मन्थरक ने जब देखा कि कोई कौवा चूहे को पीठ पर बिठा कर आरहा है तो वह डर के मारे पानी में घुस गया। लघुपतनक को उसने पहचाना नहीं।

तब लघुपतनक हिरण्यक को थोड़ी दूर छोड़कर पानी में लटकती हुई शाखा पर बैठ कर ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगा—"मन्थरक! मन्थरक!! मैं तेरा मित्र लघुपतनक आया हूँ। आकर मुझ से मिल।"

लघुपतनक की आवाज़ सुनकर मन्थरक खुशी से नाचता हुआ बाहिर आया। दोनों ने एक दूसरे का आलिंगन किया। हिरण्यक भी तब वहां आगया और मन्थरक को प्रणाम करके वहीं बैठ गया।

मन्थरक ने लघुपतनक से पूछा—"यह चूहा कौन है? भक्ष्य होते हुए भी तू इसे अपनी पीठ पर कैसे लाया?"

लघुपतनक—"यह हिरण्यक नाम का चूहा मेरा अभिन्न मित्र है। बड़ा गुणी है यह; फिर भी किसी दुःख से दुःखी होकर मेरे साथ यहाँ आ गया है। इसे अपने देश से वैराग्य हो गया है।"

मन्थरक—"वैराग्य का कारण?

लघुपतनक—"यह बात मैंने भी पूछी थी। इसने कहा था, वहीं चलकर बतलाऊँगा। मित्र हिरण्यक! अब तुम अपने वैराग्य का कारण बतलाओ।"

हिरण्यक ने तब यह कहानी सुनाई—