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१.
धन सब क्लेशों की जड़ है

दक्षिण देश के एक प्रान्त में महिलारोप्य नामक नगर से थोड़ी दूर महादेवजी का एक मन्दिर था। वहाँ ताम्रचूड़ नाम का भिक्षु रहता था। वह नगर से भिक्षा माँगकर भोजन कर लेता था और भिक्षा-शेष को भिक्षा-पात्र में रखकर खूंटी पर टांग देता था। सुबह उसी भिक्षा-शेष में से थोड़ा २ अन्न वह अपने नौकरों को बांट देता था और उन नौकरों से मन्दिर की लिपाई-पुताई और सफ़ाई कराता था।

एक दिन मेरे कई जाति-भाई चूहों ने मेरे पास आकर कहा—"स्वामी! वह ब्राह्मण खूंटी पर भिक्षा-शेष वाला पात्र टांग देता है, जिससे हम उस पात्र तक नहीं पहुँच सकते। आप चाहें तो खूंटी पर टंगे पात्र तक पहुँच सकते हैं। आपकी कृपा से हमें भी प्रतिदिन उस में से अन्न-भोजन मिल सकता है।

उनकी प्रार्थना सुनकर मैं उन्हें साथ लेकर उसी रात वहाँ पहुँचा। उछलकर मैं खूंटी पर टंगे पात्र तक पहुँच गया। वहाँ से अपने साथियों को भी मैंने भरपेट अन्न दिया और स्वयं भी खूब खाया। प्रतिदिन इसी तरह मैं अपना और अपने साथियों का पेट पालता रहा।

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