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[पञ्चतन्त्र
 

"क्या तुम्हें उसके आने-जाने का मार्ग मालूम है?"

ताम्रचूड़—"भगवन्! वह तो मालूम नहीं। वह अकेला नहीं आता, दलबल समेत आता है। उनके साथ ही वह आता है और साथ ही जाता है।"

बृहात्स्फक—"तुम्हारे पास कोई फावड़ा है?"

ताम्रचूड़ ने कहा—"हा, फावड़ा तो है।"

दोनों ने दूसरे दिन फावड़ा लेकर हमारे (चूहों के) पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए मेरे बिल तक आने का निश्चय किया। मैं उनकी बातें सुनकर बड़ा चिन्तित हुआ। मुझे निश्चय हो गया कि वे इस तरह मेरे दुर्ग तक पहुँच कर फावड़े से उसे नष्ट कर देंगे। इसलिये मैंने सोचा कि मैं अपने दुर्ग की ओर न जाकर किसी अन्य स्थान की ओर चल देता हूँ। इस तरह सीधा रास्ता छोड़कर दूसरे रास्ते से जब मैं सदलबल जा रहा था तो मैंने देखा कि एक मोटा बिल्ला आ रहा है। वह बिल्ला चूहों की मंडली देखकर उस पर टूट पड़ा। बहुत से चूहे मारे गए, बहुत से घायल हुए। एक भी चूहा ऐसा न था जो लहूलुहान न हुआ हो। उन सब ने इस विपत्ति का कारण मुझे ही माना। मैं ही उन्हें असली रास्ते के स्थान पर दूसरे रास्ते से ले जा रहा था। बाद में उन्होंने मेरा साथ छोड़ दिया। वे सब पुराने दुर्ग में चले गये।

इस बीच बृहत्स्फिक और ताम्रचूड़ भी फावड़ा समेत दुर्ग तक पहुँच गये। वहाँ पहुँच कर उन्होंने दुर्ग को खोदना शुरू कर दिया। खोदते-खोदते उनके हाथ वह ख़ज़ाना लग गया, जिसकी