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मित्रसम्प्राप्ति] | [१२१ |
तेरे साहस से तो मैं प्रसन्न हूँ, तू चाहे तो एक वरदान माँग ले। मैं तेरी इच्छा पूरी करूँगा।"
सोमिलक ने कहा—"मुझे वरदान में प्रचुर धन दे दो।"
अदृष्ट देवता ने उत्तर दिया—"धन का क्या उपयोग? तेरे भाग्य में उसका उपभोग नहीं है। भोग रहित धन को लेकर क्या करेगा?"
सोमिलक तो धन का भूखा था, बोला—"भोग हो या न हो, मुझे धन ही चाहिये। बिना उपयोग या उपभोग के भी धन की बड़ी महिमा है। संसार में वही पूज्य माना जाता है, जिसके पास धन का संचय हो। कृपण और अकुलीन भी समाज में आदर पाते हैं। संसार उनकी ओर आशा लगाये बैठा रहता है; जिस तरह वह गीदड़ बैल से आशा रखकर उसके पीछे १५ वर्ष तक घूमता रहा।"
भाग्य ने पूछा—"किस तरह?"
सोमिलक ने फिर बैल और गीदड़ की यह कहानी सुई—