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५.

उड़ती के पीछे भागना

यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रु वाणि निषेवेत।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि॥

जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित के पीछे भट-
कता है उसका निश्चित धन भी नष्ट हो जाता है।

एक स्थान पर तीक्ष्णविषाण नाम का बैल रहता था। बहुत उन्मत्त होने के कारण उसे किसान ने छोड़ दिया था। अपने साथी बैलों से भी छूटकर वह जंगल में ही मतवाले हाथी की तरह बे रोक-टोक घूमा करता है।

उसी जंगल में प्रलोभक नाम का एक गीदड़ भी था। एक दिन वह अपनी पत्नी समेत नदी के किनारे बैठा था कि वह बैल वहीं पानी पीने आ गया। बैल के मांसल कन्धों पर लटकते हुए मांस को देखकर गीदड़ी ने गीदड़ से कहा—"स्वामी! इस बैल की लटकती हुई लोथ को देखो। न जाने किस दिन यह जमीन पर गिर जाय। तुम इसके पीछे-पीछे जाओ—जब यह ज़मीन पर गिरे, ले आना।"

(१२२)