१२६] | [पञ्चतन्त्र |
कर सकतीं। इस सञ्चय से क्या लाभ?
मन्थरक कछुआ, लघुपतनक कौवा और हिरण्यक चूहा वहाँ बैठे-बैठे यही बातें कर रहे थे कि वहां चित्रांग नाम का हिरण कहीं से दौड़ता-हांफता आ गया। एक व्याध उसका पीछा कर रहा था। उसे आता देखकर कौवा उड़कर वृक्ष की शाखा पर बैठ गया। हिरण्यक पास के बिल में घुस गया और मन्थरक तालाब के पानी में जा छिपा।
कौवे ने हिरण को अच्छी तरह देखने के बाद मन्थरक से कहा—"मित्र मन्थरक! यह तो हिरण के आने की आवाज़ है। एक प्यासा हिरण पानी पीने के लिये तालाब पर आया है। उसी का यह शब्द है, मनुष्य का नहीं।"
मन्धरक—"यह हिरण बार-बार पीछे मुड़कर देख रहा है और डरा हुआ सा है। इसलिये यह प्यासा नहीं, बल्कि व्याध के डर से भागा हुआ है। देख तो सही, इसके पीछे व्याध आ रहा है या नहीं?"
दोनों की बात सुनकर चित्रांग हिरण बोला—"मन्थरक! मेरे भय का कारण तुम जान गये हो। मैं व्याध के बाणों से डरकर बड़ी कठिनाई से यहाँ पहुँच पाया हूँ। तुम मेरी रक्षा करो। अब तुम्हारी शरण में हूँ। मुझे कोई ऐसी जगह बतलाओ जहाँ व्याध न पहुँच सके।"
मन्थरक ने हिरण को घने जङ्गालों में भाग जाने की सलाह दी। किन्तु लघुपतनक ने ऊपर से देखकर बतलाया कि व्याध