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मित्रसम्प्राप्ति [१२७

दूसरी दिशा में चले गये हैं, इसलिये अब डर की कोई बात नहीं है। इसके बाद चारों मित्र तालाब के किनारे वृक्षों की छाया में मिलकर देर तक बातें करते रहे।

कुछ समय बाद एक दिन जब कछुआ, कौवा और चूहा बातें कर रहे थे, शाम हो गई। बहुत देर बाद भी हिरण नहीं आया। तीनों को सन्देह होने लगा कि कहीं फिर वह व्याध के जाल में न फँस गया हो; अथवा शेर, बाघ आदि ने उस पर हमला न कर दिया हो। घर में बैठे स्वजन अपने प्रवासी प्रियजनों के सम्बन्ध में सदा शंकित रहते हैं।

बहुत देर तक भी चित्राँग हिरण नहीं आया तो मन्थरक कछुए ने लघुपतनक कौवे को जङ्गल में जाकर हिरण के खोजने की सलाह दी। लघुपतनक ने कुछ दूर जाकर ही देखा कि वहाँ चित्राँग एक जाल में बँधा हुआ है। लघुपतनक उसके पास गया। उसे देखकर चित्राँग की आँखों में आँसू आ गये। वह बोला—"अब मेरी मृत्यु निश्चित है। अन्तिम समय में तुम्हारे दर्शन कर के मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। प्राण विसर्जन के समय मित्र-दर्शन बड़ा सुखद होता है। मेरे अपराध क्षमा करना।"

लघुपतनक ने धीरज बँधाते हुए कहा—"घबराओ मत! मैं अभी हिरण्यक चूहे को बुला लाता हूँ। वह तुम्हारे जाल काट देगा।"

यह कहकर वह हिरण्यक के पास चला गया और शीघ्र ही उसे पीठ पर बिठाकर ले आया। हिरण्यक अभी जाल काटने की