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काकोलूकीयम्] [१३९


कौवे ने सोचा, यह समारोह कैसा? यह उत्सव किस लिए? पक्षियों ने भी कौवे को देखा तो आश्चर्य में पड़ गए। उसे तो किसी ने बुलाया ही नहीं था। फिर भी, उन्होंने सुन रखा था कि कौआ सब से चतुर कूटराजनीतिज्ञ पक्षी है; इसलिये उस से मन्त्रणा करने के लिये सब पक्षी उसके चारों ओर इकट्ठे हो गए।

उलूक राज के राज्याभिषेक की बात सुन कर कौवे ने हँसते हुए कहा—"यह चुनाव ठीक नहीं हुआ। मोर, हंस, कोयल, सारस, चक्रवाक, शुक आदि सुन्दर पक्षियों के रहते दिवान्ध उल्लू ओर टेढ़ी नाक वाले अप्रियदर्शी पक्षी को राजा बनाना उचित नहीं है। वह स्वभाव से ही रौद्र है और कटुभाषी है। फिर अभी तो वैनतेय राजा बैठा है। एक राजा के रहते दूसरे को राज्यासन देना विनाशक है। पृथ्वी पर एक ही सूर्य होता है; वही अपनी आभा से सारे संसार को प्रकाशित कर देता है। एक से अधिक सूर्य होने पर प्रलय हो जाती है। प्रलय में बहुत से सूर्य निकल आते हैं; उन से संसार में विपत्ति ही आती है, कल्याण नहीं होता।

राजा एक ही होता है। उसके नाम-कीर्त्तन से ही काम बन जाते हैं। चन्द्रमा के नाम से ही खरगोशों ने हाथियों से छुटकारा पाया था।

पक्षियों ने पूछा—"कैसे?"

कौवे ने तव खरगोश और हाथी की यह कहानी सुनाई—