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१४२] [पञ्चतन्त्र

दूत हाथियों के दलपति के पास भेजा जाय। वह उससे यह कहे कि चन्द्रमा में जो खरगोश बैठा है उसने हाथियों को इस तालाब में आने से मना किया है। संभव है चन्द्रमास्थित खरगोश की बात को वह मान जाय।"

बहुत विचार के बाद लम्बकर्ण नाम के खरगोश को दूत बना कर हाथियों के पास भेजा गया। लम्बकर्ण भी तालाब के रास्ते में एक ऊँचे टीले पर बैठ गया; और जब हाथियों का झुण्ड वहाँ आया तो वह बोला—"यह तालाब चाँद का अपना तालाब है। यहाँ मत आया करो।"

गजराज—"तू कौन है?"

लम्बकर्ण—"मैं चाँद में रहने वाला खरगोश हूँ। भगवान् चन्द्र ने मुझे तुम्हारे पास यह कहने के लिये भेजा है कि इस तालाब में तुम मत आया करो।"

गजराज ने कहा—"जिस भगवान् चन्द्र का तुम सन्देश लाए हो वह इस समय कहाँ है?"

लम्बकर्ण—"इस समय वह तालाब में हैं। कल तुम ने खरगोशों के बिलों का नाश कर दिया था। आज वे खरगोशों की विनति सुनकर यहाँ आये हैं। उन्हीं ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।"

गजराज—"ऐसा ही है तो मुझे उनके दर्शन करा दो। मैं उन्हें प्रणाम करके वापस चला जाऊँगा।"

लम्बकर्ण अकेले गजराज को लेकर तालाब के किनारे पर ले