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काकोलूकीयम्] | [१४३ |
गया। तालाब में चाँद की छाया पड़ रही थी। गजराज ने उसे ही चाँद समझ कर प्रणाम किया और लौट पड़ा। उस दिन के बाद कभी हाथियों का दल तालाब के किनारे नहीं आया।
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कहानी समाप्त होने के बाद कौवे ने फिर कहा—"यदि तुम उल्लू जैसे नीच, आलसी, कायर, व्यसनी और पीठ पीछे कटु भाषी पक्षी को राजा बनाओगे तो शश कपिंजल की तरह नष्ट हो जाओगे।
पक्षियों ने पूछा—"कैसे?"
कौवे ने कहा—"सुनो—