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६.

टूटी प्रीति जुड़े न दूजी बार

'भिन्नश्लिष्टा तु या प्रीतिर्न सा स्नेहेन वर्धते'


एक बार टूट कर जुड़ी हुई प्रीति कभी स्थिर

नहीं रह सकती

एक स्थान पर हरिदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। पर्याप्त भिक्षा न मिलने से उसने खेती करना शुरू कर दिया था। किन्तु खेती कभी ठीक नहीं हुई। किसी न किसी कारण फ़सल ख़राब हो जाती थी।

गर्मियों के दिनों में एक दिन वह अपने खेत में वृक्ष की छाया के नीचे लेटा हुआ था कि उसने पास ही एक बिल पर फन फैलाकर बैठे हुए भयंकर सांप को देखा। सांप को देखकर सोचने लगा, अवश्यमेव यही मेरा क्षेत्र-देवता है; मैंने इसकी कभी पूजा नहीं की, तभी मेरी खेती सूख जाती है, अब इसकी पूजा किया करूंगा। यह सोचकर वह कहीं से दूध मांग कर पात्र में डाल लाया और बिल के पास जाकर बोला—'क्षेत्रपाल! मैंने अज्ञानवश आजतक तेरी पूजा नहीं की। आज मुझे ज्ञान हुआ है। पूजा की यह भेंट स्वीकार करो और मेरे पिछले अपराधों को क्षमा कर दें।' यह कह कर वह दूध का पात्र वहीं रखकर वापिस आ गया।

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