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१५६] [पञ्चतन्त्र


अगले दिन सुबह जब वह बिल के पास गया तो देखता क्या है कि सांप ने दूध पी लिया है और पात्र में एक सोने की मुहर पड़ी है। दूसरे दिन भी ब्राह्मण ने जिस पात्र में दूध रखा था उस में सोने की मुहर पड़ी मिली। इसके बाद प्रतिदिन उसे दूध के बदले सोने की मुहर मिलने लगी। वह भी नियम से प्रतिदिन दूध देने लगा।

एक दिन हरिदत्त को गाँव से बाहर जाना था। इसलिए उसने अपने पुत्र को पूजा का दूध ले जाने के लिए आदेश दिया। पुत्र ने भी पात्र में दूध रख दिया। दूसरे दिन उसे भी मुहर मिल गई। तब, वह सोचने लगा; 'इस वल्मीक में सोने की मुहरों का ख़ज़ाना छिपा हुआ है, क्यों न इसे तोड़कर पूरा ख़ज़ाना एक बार ही हस्तगत कर लिया जाय।' यह सोचकर उसने अगले दिन जब दूध का पात्र रखा और सांप दूध पीने आया तो लाठी से सांप पर प्रहार किया। लाठी का निशाना चूक गया। सांप ने क्रोध में आकर हरिदत्त के पुत्र को काट लिया, जिससे वह वहीं मर गया।

दूसरे दिन जब हरिदत्त वापिस आया तो स्वजनों से पुत्र-मृत्यु का सब वृत्तान्त सुनकर बोला–"पुत्र ने अपने किये का फल पाया है। जो व्यक्ति अपनी शरण आये जीवों पर दया नहीं करता, उसके बने-बनाए काम भी बिगड़ जाते हैं, जैसे पद्मसर में हंसों का काम बिगड़ गया।"

स्वजनों ने पूछा—"कैसे?"

हरिदत्त ने तब हंसों की अगली कथा सुनाई—