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७.

शरणागत को दुत्कारो नहीं

'भूतान् यो नाऽनुगृह्णाति आत्मनः शरणागतान्।
भूतार्थास्तस्य नश्यन्ति हंसाः पद्मवने यथा॥'


जो शरणागत जीव पर दया नहीं करते उन पर

देव की भी दया नहीं रहती

एक नगर में चित्ररथ नाम का राजा रहता था। उसके पास एक पद्मसर नाम का तालाब था। राजा के सिपाही उसकी रखवाली करते थे। तालाब में बहुत से स्वर्णमय हंस रहते थे। प्रति छः महीने बाद वे हंस अपना एक पंख उतार देते थे। इससे राजा को छः महीने बाद अनेक सोने के पंख मिल जाते थे।

कुछ दिन बाद वहाँ एक बहुत बड़ा स्वर्णपक्षी आ गया। हंसों ने उस पक्षी से कहा कि तुम इस तालाब में मत रहो। हम इस तालाब में प्रति छः मास बाद सोने का पंख देकर रहते हैं। मूल्य देकर हम ने यह तालाब किराये पर ले रखा है।" पक्षी ने हंसों की बात पर कान नहीं दिये। दोनों में संघर्ष चलता रहा।

एक दिन वह पक्षी राजा के पास जाकर बोला—"महाराज!

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