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१०.

घर का भेदी

परस्परस्य मर्माणि ये न रक्षन्ति जन्तवः।
त एव निधनं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत्॥


एक दूसरे का भेद खोलने वाले स्वयं

नष्ट हो जाते हैं।

एक नगर में देवशक्ति नाम का राजा रहता था। उसके पुत्र के पेट में एक साँप चला गया था। उस साँप ने वहीं अपना बिल बना लिया था। पेट में बैठे साँप के कारण उसके शरीर का प्रतिदिन क्षय होता जा रहा था। बहुत उपचार करने के बाद भी जब स्वास्थ्य में कोई सुधार न हुआ तो अत्यन्त निराश होकर राजपुत्र अपने राज्य से बहुत दूर दूसरे प्रदेश में चला गया। और वहाँ सामान्य भिखारी की तरह मन्दिर में रहने लगा।

उस प्रदेश के राजा बलि की दो नौजवान लड़कियाँ थीं। वह दोनों प्रतिदिन सुबह अपने पिता को प्रणाम करने आती थीं। उनमें से एक राजा को नमस्कार करती हुई कहती थी—

(१६७)