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१८४] [पञ्चतन्त्र


मेंढक ने जब कारण पूछा तो साँप ने झूठमूठ एक कहानी बना ली। वह बोला—"बात यह है कि आज सुबह मैं एक मेंढक को मारने के लिए जब आगे बढ़ा तो मेंढक वहाँ से उछल कर कुछ ब्राह्मणों के बीच में चला गया। मैं भी उसके पीछे-पीछे वहाँ गया। वहाँ जाकर एक ब्राह्मण-पुत्र का पैर मेरे शरीर पर पड़ गया। तब मैंने उसे डस लिया। वह ब्राह्मण-पुत्र वहीं मर गया। उसके पिता ब्राह्मण ने मुझे क्रोध से जलते हुए यह शाप दिया कि तुझे मेंढकों का वाहक बन कर उन्हें सैर कराना होगा। तेरी सेवा से प्रसन्न होकर जो कुछ वे तुझे देंगे, वही तेरा आहार होगा। स्वतन्त्र रूप से तू कुछ भी खा नहीं सकेगा। यहाँ पर मैं तुम्हारा वाहक बनकर ही आया हूँ!"

उस मेंढक ने यह बात अपने साथी मेंढकों को भी कह दी। सब मेंढक बड़े खुश हुए। उन्होंने इसका वृत्तान्त अपने राजा 'जलपाद' को भी सुनाया। जलपाद ने अपने मन्त्रियों से सलाह करके यही निश्चय किया कि साँप को वाहक बनाकर उसकी सेवा से लाभ उठाया जाय। जलपाद के साथ सभी मेंढक साँप की पीठ पर सवार हो गए। जिनको उसकी पीठ पर स्थान नहीं मिला उन्होंने साँप के पीछे गाड़ी लगा कर उसकी सवारी की।

सांप पहले तो बड़ी तेज़ी से दौड़ा, बाद में उसकी चाल धीमी पड़ गई। जलपाद के पूछने पर इसका कारण यह बतलाया "आज भोजन न मिलने से मेरी शक्ति क्षीन हो गई है, क़दम नहीं उठते।"