पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
लब्धप्रणाशम्] [१९५

बिल में रहने वाले नाग का नाम था 'प्रियदर्शन'। गंगदत्त उसे पुकारने लगा। प्रियदर्शन ने सोचा, 'यह साँप की आवाज़ नहीं है; तब कौन मुझे बुला रहा है? किसी के कुल-शील से परिचिति पाये बिना उसके संग नहीं जाना चाहिये। कहीं कोई सपेरा ही उसे बुलाकर पकड़ने के लिये न आया हो।' अतः अपने बिल के अन्दर से ही उसने आवाज़ दी—"कौन है, जो मुझे बुला रहा है?"

गंगदत्त ने कहा—"मैं गंगदत्त मेंढक हूँ। तेरे द्वार पर तुझ से मैत्री करने आया हूँ।"

यह सुनकर साँप ने कहा—"यह बात विश्वास योग्य नहीं हो सकती। आग और घास में मैत्री नहीं हो सकती। भोजन-भोज्य में प्रेम कैसा? वधिक और वध्य में स्वप्न में भी मित्रता असंभव है।"

गंगदत्त ने उत्तर दिया—"तेरा कहना सच है। हम परस्पर स्वभाव से बैरी हैं, किन्तु मैं अपने स्वजनों से अपमानित होकर प्रतिकार की भावना से तेरे पास आया हूँ।"

प्रियदर्शन—"तू कहाँ रहता है?"

गंगदत्त—"कूएँ में।"

प्रियदर्शन—"पत्थर से चिने कूएँ में मेरा प्रवेश कैसे होगा? प्रवेश होने के बाद मैं वहाँ बिल कैसे बनाऊँगा?"

गंगदत्त—"इसका प्रबन्ध मैं कर दूंगा। वहाँ पहले ही बिल