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१९८] [पञ्चतन्त्र


गंगदत्त अवसर पाकर कुएँ से निकल गया। प्रियदर्शन प्रतिक्षण उसकी प्रतीक्षा में बैठा रहा। बहुत दिन तक भी जब गंगदत्त वापिस नहीं आया तो सांप ने अपने पड़ोस के बिल में रहने वाली गोह से कहा कि—"तू मेरी सहायता कर। बाहिर जाकर गंगदत्त को खोजना और उसे कहना कि यदि दूसरे मेंढक नहीं आते तो भी वह आ जाय। उसके बिना मेरा मन नहीं लगता।"

गोह ने बाहर निकलकर गंगदत्त को खोज लिया। उससे भेंट होने पर वह बोली—"गंगदत्त! तेरा मित्र प्रियदर्शन तेरी राह देख रहा है। चल, उसके मन को धीरज बँधा। वह तेरे बिना बहुत दुःखी है।"

गंगदत्त ने गोह से कहा—"नहीं, मैं अब नहीं जाऊँगा। संसार में भूखे का कोई भरोसा नहीं, ओछे आदमी प्रायः निर्दय हो जाते हैं। प्रियदर्शन को कहना कि गंगदत्त अब वापिस नहीं आयगा।"

गोह वापिस चली गई।

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यह कहानी सुनाने के बाद बन्दर ने मगरमच्छ से कहा कि मैं भी गंगदत्त की तरह वापिस नहीं जाऊँगा।

मगरमच्छ बोला—"मित्र! यह उचित नहीं है, मैं तेरा सत्कार करके कृतघ्नता का प्रायश्चित्त करना चाहता हूँ। यदि तू मेरे साथ नहीं जायगा तो मैं यहीं भूख से प्राण दे दूंगा।"

बन्दर बोला—"मूर्ख! क्या मैं लम्बकर्ण जैसा मूर्ख हूँ, जो स्वयं मौत के मुख में जा पडूंगा। वह गधा शेर को देखकर वापिस चला गया था, लेकिन फिर उसके पास आगया। मैं ऐसा अन्धा नहीं हूँ"

मगर ने पूछा—"लम्बकर्ण कौन था?"

तब बन्दर ने यह कहानी सुनाई—