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२०२] [पञ्चतन्त्र


गीदड़ ने देखा कि गधा उसी स्थान पर फिर घास चर रहा है।

गीदड़ को देखकर गधे ने कहा—"भगिनीसुत! तू भी मुझे खूब अच्छी जगह ले गया। एक क्षण और हो जाता तो जीवन से हाथ धोना पड़ता। भला, वह कौन सा जानवर था जो मुझे देख कर उठा था, और जिसका वज्र समान हाथ मेरी पीठ पर पड़ा था?"

तब हँसते हुए गीदड़ ने कहा—"मामा! तुम भी विचित्र हो, गर्दभी तुम्हें देख कर आलिङ्गन करने उठी और तुम वहाँ से भाग आये। उसने तो तुम से प्रेम करने को हाथ उठाया था। वह तुम्हारे बिना जीवित नहीं रहेगी। भूखी-प्यासी मर जायगी। वह कहती है, यदि लम्बकर्ण मेरा पति नहीं होगा तो मैं आग में कूद पड़ूंगी।

इसलिए अब उसे अधिक मत सताओ। अन्यथा स्त्री-हत्या का पाप तुम्हारे सिर लगेगा। चलो, मेरे साथ चलो।"

गीदड़ की बात सुन कर गधा उसके साथ फिर जङ्गल की ओर चल दिया। वहाँ पहुँचते ही शेर उस पर टूट पड़ा। उसे मार कर शेर तालाब में स्नान करने गया। गीदड़ रखवाली करता रहा। शेर को ज़रा देर हो गई। भूख से व्याकुल गीदड़ ने गधे के कान और दिल के हिस्से काट कर खा लिये।

शेर जब भजन-पूजन से वापस आया तो उसने देखा कि गधे के कान नहीं थे, और दिल भी निकला हुआ था। क्रोधित होकर उसने गीदड़ से कहा—"पापी! तूने इसके कान और दिल खा