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३.
समय का राग कुसमय की टर्र

"स्वार्थभुत्सृज्य यो दंभी सत्यं ब्रूते सुमन्दधीः।
स स्वर्थद्भ्रश्यते नूनं युधिष्ठिर इवापरः"


अपने प्रयोजन से या केवल दंभ से सत्य

बोलने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है।

युधिष्ठिर नाम का कुम्हार एक बार टूटे हुए घड़े के नुकीले ठीकरे से टकरा कर गिर गया। गिरते ही वह ठीकरा उसके माथे में घुस गया। खून बहने लगा। घाव गहरा था, दवा-दारू से भी ठीक न हुआ। घाव बढ़ता ही गया। कई महीने ठीक होने में लग गये। ठीक होने पर भी उसका निशान माथे पर रह गया।

कुछ दिन बाद अपने देश में दुर्भिक्ष पड़ने पर वह एक दूसरे देश में चला गया। वहाँ वह राजा के सेवकों में भर्ती हो गया। राजा ने एक दिन उसके माथे पर घाव के निशान देखे तो समझा कि यह अवश्य कोई वीर पुरुष होगा, जो लड़ाई में शत्रु का सामने से मुक़ाबिला करते हुए घायल हो गया होगा। यह समझ उसने

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