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२१८] [पञ्चतन्त्र

किसान-पत्नी के धन पर हाथ साफ करना चाहता था। उसने नदी को पार करने के लिये यह सुझाव रखा कि पहले वह सम्पूर्ण धन-ज़ेवर की गठरी बाँध कर दूसरे किनारे रख आयेगा, फिर आकर सुन्दरी को सहारा देते हुए पार पहुँचा देगा।" किसान-पत्नी मूर्ख थी, वह यह बात मान गई। धन-आभूषणों के साथ वह पत्नी के क़ीमती कपड़े भी ले गया। किसान-पत्नी निपट नग्न रह गई।

इतने में वहाँ एक गीदड़ी आई। उसके मुख में माँस का टुकड़ा था। वहाँ आकर उसने देखा कि नदी के किनारे एक मछली बैठी है। उसे देखकर वह मांस के टुकड़ों को वहीं छोड़ मछली मारने किनारे तक गई। इसी बीच एक गृद्ध आकाश से उतरा और झपट कर मांस का टुकड़ा दबोच कर ले गया। उधर मछली भी गीदड़ी को आता देख नदी में कूद पड़ी। गीदड़ी दोनों ओर से खाली हाथ हो गई। मांस का टुकड़ा भी गया और मछली भी गई। उसे देख नग्न बैठी किसानकन्या ने कहा—"गीदड़ी! गृद्ध तेरा मांस ले गया और मछली पानी में कूद गई, अब आकाश की ओर क्या देख रही है?" गीदड़ी ने भी प्रत्युत्तर देने में शीघ्रता की। वह बोली—"तेरा भी तो यही हाल है। न तेरा पति तेरा अपना रहा और न ही वह सुन्दर युवक तेरा बना। वह तेरा धन लेकर चला जा रहा है।"

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मगर यह कहानी सुना ही रहा था कि एक दूसरे मगर ने आकर सूचना दी कि "मित्र! तेरे घर पर भी दूसरे मगरमच्छ ने